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वीर प्रसूता भू गढ़वाल
चीड़ बाँज रसाल के डाल,
शस्य स्यामला गिरी विशाल
ऐसा मेरा जयहरीखाल।


ज्ञान उदधि का केंद्र बिन्दु ये
स्यालगांव का श्वेद बिन्दु ये,
कर्मशील का कर्म बिन्दु ये,
ज्ञान सरित का मर्म बिन्दु ये।


भक्त दर्शन का 'दर्शन'
गिरिवन में अब मूर्त हुआ,
जीवन के उत्कर्षों का,
शिक्षा ही अब सूत्र हुआ है।


अर्थशास्त्र, वाणिज्य, भूगोल, रसायन
राजनीति, भू, गणित, अंग्रेजी, गायन,
इतिहास, संस्कृत, हिन्दी मनभावन
जन्तु वनस्पति 'शिक्षा' पवन।


ज्ञान रंग में सूर्य उगा है ,
अज्ञानता को अब कहाँ जगह है।

नाथ सिद्ध और ऋषि-मुनियों की
तंत्र भूमि ये, मंत्र भूमि ये
भक्तदर्शन और पीताम्बर की
कर्मभूमि ये ,जन्मभूमि ये

इसी धारा में,
नागार्जुन का गुंजित गान हुआ है,
देश धर्म पर मरने वाले
वीरों का सम्मान हुआ है।

इसी धरा में,
गूढ़ तत्व का मंथन होगा,
कॉलेज होगा केंद्र बिन्दु,
शिष्यों का अभिनन्दन होगा।

ज्ञान उदधि को मथकर हम
भव वारिध अब पार करेंगे,
गिरिवन के जन-जन में हम।
नवजीवन का संचार करेंगे।

ज्ञान भक्ति कर्मयोग का
नए रूप में पान करेंगे।
श्वेद रक्त और ज्ञान भाव से
भारत माँ का श्रृंगार करेंगे।

ऋतुपति के रंग विशाल
भक्त दर्शन औ पीताम्बर की
ऐसा मेरा जयहरीखाल।